कहानी: आख़िरी सीढ़ी
कहानी: आख़िरी
सीढ़ी
भाग 1: शुरुआत एक झोपड़ी से
राजस्थान
के एक छोटे से गांव खेरवाड़ा में रहने वाला विक्रम बहुत ही गरीब परिवार से था। उसके पिता
मिट्टी के बर्तन बनाते थे और मां खेतों में काम करती थी। घर की हालत ऐसी थी कि
छत से बारिश का पानी टपकता, और
गर्मियों में मिट्टी फट जाया करती थी। विक्रम
बचपन से ही बहुत होशियार था। मगर गरीबी की वजह से स्कूल कभी-कभी ही जा पाता था।
फिर भी जब भी स्कूल जाता, तो
पूरे गांव के मास्टरजी उसकी तारीफ़ करते — “विक्रम, तुम सिर्फ एक छात्र नहीं हो, तुम भविष्य हो।” भाग 2: ठोकरें और सीख
कक्षा
10वीं के बाद घर की
हालत और बिगड़ने लगी। पिता बीमार हो गए, और मां के काम करने की ताक़त घटने लगी। कई लोगों ने कहा,
“पढ़ाई छोड़ दो
विक्रम, मज़दूरी करो,
घर संभालो।” विक्रम
के सामने दो रास्ते थे: 1.
आसान
रास्ता — कमाना शुरू कर दे। 2.
कठिन
रास्ता — संघर्ष करता रहे और
पढ़ाई जारी रखे। विक्रम
ने दूसरा रास्ता चुना। वो
दिन में खेतों में काम करता, रात
को सरकारी स्कूल की टूटी हुई बेंच पर बैठकर पढ़ता। किसी से ट्यूशन नहीं ली,
खुद ही किताबें पढ़ीं, खुद ही समझा। भाग 3: पहला बड़ा इम्तिहान
जब
12वीं की बोर्ड
परीक्षा आई, तो
गांव में लोग कहते थे, “क्या
खाक पास होगा ये लड़का?” मगर
विक्रम के मन में आग थी। वो
रोज़ 4 बजे सुबह उठता,
एक घंटा खेत में पानी देता, और फिर बैठ जाता अपनी किताबों के साथ। परीक्षा
के दिन जब वो साइकिल से 10 किलोमीटर
दूर सेंटर गया, उसके
पास खाने के लिए सिर्फ एक सूखी रोटी थी। मगर हौसला लोहे जैसा था। जब
रिजल्ट आया — विक्रम पूरे जिले में टॉप पर था। गांव
में ढोल नहीं बजे, लेकिन
उसकी मां की आँखों में जो चमक थी, वो किसी जश्न से कम नहीं थी। भाग 4: आख़िरी सीढ़ी
12वीं
के बाद भी संघर्ष जारी रहा। कॉलेज की फीस भरने के लिए उसने किताबें बांधने का
काम किया, रिक्शा
चलाया, बच्चों को ट्यूशन
दी। मगर कभी पढ़ाई नहीं छोड़ी। आख़िरकार,
उसे एक स्कॉलरशिप मिली और वो
इंजीनियरिंग कॉलेज पहुँच गया। वहां उसने खुद को और निखारा — नई भाषा सीखी, कंप्यूटर चलाना सीखा, और एक दिन एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी
में नौकरी पा ली। जब
पहली बार उसने माँ को शहर बुलाया और लिफ्ट में ऊपर जाते हुए कहा — "माँ,
देखो, अब हमें सीढ़ियाँ नहीं चढ़नी पड़ती..." सीख:
·
जिंदगी
में आख़िरी सीढ़ी तक पहुंचने के लिए
पहले हजार ठोकरें खानी पड़ती हैं। ·
कठिनाई स्थायी नहीं होती,
लेकिन जो उनसे लड़ता है, उसका सपना स्थायी बन जाता है। · हिम्मत वो दीया है जो हवा से नहीं बुझता, बल्कि अंधेरे में और चमकता है। |