कहानी: एक दिया और तूफ़ान की

कहानी: एक दिया और तूफ़ान की

बहुत साल पहले उत्तर भारत के एक दूरदराज़ गांव "मधुपुर" में अर्जुन नाम का एक लड़का रहता था। उसकी उम्र लगभग 14 साल थी, मगर सोच बड़ी थी। वह पतले शरीर और गहरे साँवले रंग का लड़का था, जिसकी आँखों में सपनों की एक चमक थी।

अर्जुन के पिता एक मामूली किसान थे। घर में आमदनी इतनी नहीं थी कि अच्छे कपड़े या स्कूल की फीस दी जा सके। गांव में एक सरकारी स्कूल था, मगर वहाँ पढ़ाई नाम की चीज़ मुश्किल से होती थी। फिर भी अर्जुन हर रोज़ स्कूल जाता, अध्यापकों से सवाल पूछता, और जो कुछ भी पढ़ाया जाता, उसे पूरी लगन से याद करता।

जुनून की शुरुआत

अर्जुन को बचपन से ही कहानियां लिखने और सुनाने का बहुत शौक था। जब गांव में मेले लगते थे, और किसी बुज़ुर्ग दादा जी की कहानी सुनने भीड़ लगती, तो अर्जुन सबसे आगे बैठा होता। वह हर कहानी को ध्यान से सुनता, और फिर घर आकर अपनी कॉपी में वैसी ही एक नई कहानी लिखने की कोशिश करता।

मगर उसके पास न तो किताबें थीं, न ही कोई गाइड करने वाला। उसका सबसे बड़ा दोस्त था कूड़े में मिलने वाला कागज़ और फेंकी हुई पुरानी किताबें।

लोगों की बातें और ताने

गांव में बहुत से लोग उसका मज़ाक उड़ाते थे। कुछ कहते – "ये लड़का पागल हो गया है। मिट्टी में रहने वाले को आसमान में उड़ने की क्या ज़रूरत?" कुछ तो ये भी कहते – "भूखा रह जाएगा, कलम से कोई पेट नहीं भरता।"

मगर अर्जुन ने कभी किसी की बातों पर ध्यान नहीं दिया। वह जानता था कि वह क्या कर रहा है। वो कहता, "भले ही आज मेरे पास किताबें नहीं हैं, मगर कल मेरे पास अपनी किताब होगी, जो लाखों लोग पढ़ेंगे।"

तूफ़ान वाली रात

एक दिन, बरसात के मौसम में गांव में ज़ोरदार तूफ़ान आया। हवा इतनी तेज़ थी कि पेड़ उखड़ गए, बिजली के खंभे गिर गए और पूरे गांव की बिजली चली गई। रात के अंधेरे ने हर तरफ सन्नाटा फैला दिया।

अर्जुन के घर में भी अंधेरा था। उसकी मां ने खाना बना लिया था, मगर डर की वजह से वो सब सोने की तैयारी में थे।

मगर अर्जुन, उस अंधेरे में भी, अपने पुराने कागजों और किताबों को लेकर बैठा था। उसने मिट्टी के दीये में तेल डाला और एक माचिस से उसे जला लिया। धीमी लौ में वह किताब पढ़ने लगा।

उसकी मां ने हैरानी से पूछा, "बेटा, इतनी रात को, तूफ़ान में पढ़ाई? दीया भी कभी तूफ़ान से लड़ सकता है?"

अर्जुन ने मुस्कराकर जवाब दिया, "माँ, ये दीया तूफ़ान को नहीं रोक सकता, मगर अंधेरे से लड़ सकता है। और मैं अपने अंधेरे से लड़ रहा हूँ गरीबी के अंधेरे से, अनपढ़ होने के डर से, लोगों की हँसी से।"

उस रात दीया आधे घंटे तक जला रहा। मगर अर्जुन उस आधे घंटे में भी पढ़ता रहा। जब लौ बुझ गई, तो वह लेट गया, लेकिन मन ही मन एक संकल्प ले लिया "एक दिन मैं अपनी रौशनी खुद बनूंगा।"

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समय बीतता गया

अर्जुन ने पढ़ाई जारी रखी। उसने अपने लेखों को गांव के स्कूल की दीवार पत्रिका में लगाना शुरू किया। धीरे-धीरे, उसके लेख बाकी बच्चों और अध्यापकों का ध्यान खींचने लगे।

एक अध्यापक, श्री शर्मा, जो रिटायरमेंट के करीब थे, उन्होंने अर्जुन की प्रतिभा को पहचाना। उन्होंने अर्जुन को कुछ पुरानी किताबें दीं प्रेमचंद, टैगोर, और महादेवी वर्मा की। और फिर उसे एक सुझाव दिया – "तू अपना लिखा एक बार अखबार को भेज, हो सकता है छप जाए।"

अर्जुन ने पहली बार अपनी एक छोटी सी कहानी भेजी। हफ्तों तक जवाब नहीं आया। लेकिन फिर एक दिन गांव के डाकिये ने उसे एक अख़बार की प्रति थमाई, जिसमें उसकी कहानी "काँच की गुड़िया" छपी थी।

अर्जुन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। गांव के जिन लोगों ने उसे ताने दिए थे, अब वे उसकी तारीफ करने लगे। मगर अर्जुन को घमंड नहीं हुआ। वो जानता था कि यह तो सिर्फ शुरुआत है।

पहली किताब का सपना

अर्जुन ने ठान लिया था कि वह एक दिन अपनी किताब लिखेगा ऐसी किताब जो उस जैसे हज़ारों गरीब बच्चों को उम्मीद दे। सालों की मेहनत के बाद, कॉलेज की पढ़ाई पूरी करके, उसने पहली किताब लिखी।

उस किताब का नाम था "एक दिया और तूफ़ान"

किताब को छपवाना आसान नहीं था। बहुत से प्रकाशकों ने मना कर दिया। लेकिन आख़िरकार एक छोटे प्रकाशक ने मौका दिया। और फिर, जो हुआ, वो इतिहास बन गया।

किताब पढ़कर लोग रो पड़े, कईयों को उम्मीद की नई किरण मिली। एक छोटा सा गांव का लड़का, जिसने दीए की रौशनी में सपना देखा था, अब लाखों लोगों की ज़िंदगी में रौशनी बन चुका था।

अंत नहीं, शुरुआत है

अर्जुन अब एक मशहूर लेखक है। वह बड़े शहरों में सेमिनार करता है, मगर हर साल अपने गांव लौटता है, और वहां के बच्चों को कहानियां सुनाता है। वो कहता है:

"तूफ़ान सबकी ज़िंदगी में आते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कोई डर कर सो जाता है, और कोई दीया जलाकर लड़ता है।"


कहानी से सीख:

  • हालात कैसे भी हों, अगर हौसला हो तो रास्ते खुद बन जाते हैं।
  • सपनों को सच करने के लिए बड़ी चीज़ों की नहीं, छोटे-छोटे जज़्बों की ज़रूरत होती है।
  • कभी किसी के ताने से हार मत मानो, क्योंकि जो लोग उड़ते हैं, उन्हें ज़मीन वाले अक्सर समझ नहीं पाते।